कुम्भ--! हमारी संस्कृति, हमारा राष्ट्र और वे..।.

          कुम्भ हमारी धर्म- संस्कृति क़ा महानतम आयोजन है।

यह कुम्भ भारत वर्ष में चार स्थानों पर लगता है। इस अवसर पर हमारे संत गण सामाजिक बिसंगातियो के समाधान क़ा रास्ता बनायें यह इस महापर्व से अपेक्षा रहती है। जहा गंगा, यमुना के पवित्रता की चिंता है वही सामाजिक, जातीय कुरीतिया क़ा समाधान भी अपेक्षित है, जैसा की हम जानते है की भारत वर्ष पहले सांस्कृतिक रूप से एक था तो बिभिन्न राजा, महाराजा चक्रवर्ती सम्राट शासन किया करते थे। भारत पर जब बिदेशियो क़ा हमला शुरू होने से आर्य चाणक्य, चन्द्रगुप्त ने सांस्कृतिक भारत को शसक्त राजनैतिक भारत क़ा निर्माण किया। अब कुम्भ क़ा महत्व और भी बढ़ गया, समुद्र मंथन में जो रत्न निकला उसमे अमृत प्रमुख था। अमृत पान को लेकर देवताओ, दैत्यों में संघर्ष १२ दिन तक हुवा इस नाते बारह वर्ष में कुम्भ पर्व आता है। जयंत जो इन्द्र क़ा पुत्र था अमृत कुम्भ को लेकर भागा वह सीधे स्वर्ग की तरफ गया आपसी छिना झपटी में अमृत छलक कर प्रयाग स्थित त्रिवेणी, हरिद्वार में गंगा, नासिक में गोदावरी और उज्जैन में छिप्रा नदी में गिरा। कुम्भ क़ा धार्मिक, सांस्कृतिक मेला इन्ही चार स्थानों पर लगता है, यह कुम्भ १३०बर्ग किलोमीटर में, यही से गंगोत्री, यमुनोत्री, बद्रीनाथ. केदारनाथ, जाने क़ा रास्ता है।

सभी को समाहित करने वाली संस्कृति 

कुम्भ में हमारे संसकृतिक आदान - प्रदान होते थे सामाजिक ब्यवस्था पर चर्चा होती थी ,अन्य समाज के जैसे शक, हुण, कुषाण अपनी संस्कृत परंपरा को इसी सनातन संस्कृत में देकर पुर्णतः समाहित हो गए बुद्ध धर्म के अनुयायी होकर भी शताब्दी दर शताब्दी बिभिन्न संसकृतिक सरिताओ के समागम से भारतीय संस्कृति क़ा बिशाल महासागर बनता है, यहाँ तक के कालखंड में धर्म, सनाकृति, और राष्ट्र में कोई बिभेद नहीं था. सामाजिक समस्याओ क़ा समाधान इन्ही आयोजनों द्वारा होता था ,समाज में जो बिकृति थी जिसमे छुवाछुत जैसी बिकट बीमारी थी।

सभा भारतीय के लिए 

इसके बावजूद कुम्भ सबके लिए पवित्र , कही किसी को कोई रोक-टोक नहीं है. नानक पंथी, कबीर पंथी, जैन, बौद्ध इत्यादि भारतीय पंथ जिन्हें कुम्भ जोड़कर रखता है जिनमे सांस्कृतिक चेतना जगाना बराबर नवीन बनाये रखने की छमता है, सभी इस संस्कृत के अंग है। लेकिन सैकडो वर्षो से मुसलमान, क्रिश्चियन समाज आज भी भारतीय समाज के अंग नहीं बन सके आखिर क्या कारण थे--? कारण साफ है वे यहाँ समरस होने नहीं आये! वे तो आक्रमणकारी है आज भी अपने को शासक ही मानते है, इस नाते जो राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया है वे उससे बहुत दूर है, वे भारतीय समाज में समरस नहीं होना चाहते, हमारे कुम्भ के अंग नहीं बन सकते, वे हमारी बिशाल संस्कृति के अंगभूत नहीं हो सकते। एक बार हमारे गृहमंत्री ने कहा था की मुसलिम धर्म यही क़ा है बाहरी नहीं है, शायद उन्हें भारतीय संस्कृति क़ा ज्ञान नहीं है, मुसलमान जब तक हमारी संस्कृति क़ा हिस्सा नहीं बनता इसमें समरस नहीं होता। तब तक वह भारतीय नहीं हो सकता उन्हें यह तय करना पड़ेगा की कुम्भ उनका भी है, अमृत कलश उनके लिए भी गिरा था।      गंगा, यमुना, शिप्रा, गोदावरी अदि नदिया उनके लिए भी पबित्र है आखिर उनके पुर्बजो के लिए सब पवित्र था ही अपने यहाँ धर्म परिवर्तन--- समाज की मनः स्थित को समझने क़ा प्रयास न किया जाना दुखद है वे मुसलमानों के द्वारा तोड़े गए मंदिर, मुस्लिम कट्टरता हिन्दुओ के लिए शत्रु के समान खड़ी है, इसका समाधान यही है कि जो भी भारत भक्त है उन्हें भारतीय धर्म में आना चाहिए तभी कुम्भ जो हमारी राष्ट्रीय परंपरा क़ा अंग है सार्थक होगा। यह संतो सामाजिक कार्यकर्ताओं, देश भक्तो को सोचना चाहिए, क्यों की राष्ट्र जमीन क़ा टुकड़ा नहीं है ? वह जीता जगता राष्ट्र देवता है।
            ''हिन्दवः सोदरा सर्वे न हिन्दू पतितो भवेत'' ।
         क़ा सन्देश हमारी परंपरा क़ा सन्देश कुम्भ हमें देता है।

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2 टिप्पणियाँ

  1. जब तक चारों वर्णों में बंटा हिन्दू समाज अपने वर्ग भेद को इन चार गंगा,यमुना, शिप्रा व् गोदावरी में प्रवाहित कर एक भारतीय हिन्दू समाज के रूप में खड़ा नहीं होता... तब तक कुम्भ स्नान 'महां कुम्भ ' मिलन का प्रतीक नहीं बन पायेगा.... उतिष्ठकौन्तेय.....

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  2. सादर वन्दे!
    इस ज्ञानवर्धक जानकारी के लिए आभार !
    रत्नेश त्रिपाठी

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