माओबादी लोकतंत्र क़े हत्यारे


        जब भी माओवाद व मार्क्सवाद क़ा नाम आता है तो दुनिया की आबादी सिहर सी जाती है इनका कुल इतिहास जमा १०० वर्षो क़ा है इन्होने दस करोण से अधिक  जाने ली है हमेसा सर्बहारा समता की बात करना जन समस्याओं क़े शब्द जाल में गरीब, अनपढ़ लोगो को भ्रमित करना इसी की रोटी सेकना यही इनका धंधा है .
       पशुपतिनाथ से तिरुपति तक रेड कोरिडोर बनाकर हिंसा क़े अतिरिक्त और कुछ नहीं चाहे नेपाल क़ा दस वर्ष क़ा बर्ग संघर्ष रहा हो चाहे भारत में बिभिन्न स्थानों पर, कही भी किसी स्थान पर जन समस्याओ क़े लिए न तो धरना न तो प्रदर्शन या कोई और किसी प्रकार क़ा मार्ग अपनाये हो जनता की समस्या से इनका कोई सरोकार नहीं इनके हर एजेंडे में गन, बैरल द्वारा सत्ता हथियाना बैचारिक तानाशाही क़े अतिरिक्त लोकतंत्र से इनका दूर-दूर तक कोई रिश्ता नही.
        बिकास क़े ये धुर बिरोधी है बिद्यालय, नहर, सड़क या और कोई आधारभूत ढाचा हो उसे समाप्त करना चाहे नेपाल हो या छत्तीसगढ़, झारखण्ड अथवा अन्य कही यदि लोकतान्त्रिक तरीके से बिरोध होता है तो उसका लोकतान्त्रिक तरीके से मुकाबला नहीं करना बल्कि उसकी हत्या करना, छत्तीसगढ़ में शांति पूर्बक जड़वा -सलम क़े माध्यम से जो अहिंसक तरीके से इनका मुकाबला किया लेकिन मावोबादी ने उसका जबाब सैकड़ो की हत्या करके दी, उसी प्रकार नेपाल में अभी कुछ दिन पहले मओबादियो से बिस्वास उठने क़े करण वहा की आम जनता ने अहिंसक रूप से प्रबल बिरोध किया इनका जनाधार खिसकने क़े करण  बौखला गए .
         भारत क़े हिन्दू संगठनों क़े ऊपर अनाप-सनाप आरोप लगाने लगे लोकतान्त्रिक चरित्र न होने क़े कारण नेपाल क़े दक्षिण में बीरगंज क़े एक नौजवान काशीनाथ जो माओबादी बिरोध क़ा नेतृत्व कर रहे थे २६जुन को गोली मारकर हत्या करदी, प्रभु साह जो माओबादी सांसद है उनके सहित तीन माओबादी कैडर क़े ऊपर मुकदमा दर्ज किया है कोई गिरफ़्तारी अभी तक नहीं हुई, वीरगंज घंटाघर चौक पर उसकी लास लेकर आम जनता धरने पर बैठी है २७जुन को राज़ावादी पार्टियों ने यह सांप्रदायिक हत्या है कहकर मावोबादियो क़ा बचाव ही नहीं किया बल्कि अपना चरित्र भी  उजागर किया है वैसे ये मावोबादी क़े लिए अंतिम कील साबित होगी.
         विश्व क़े सभी बामपंथियो क़ा चरित्र एक प्रकार है शब्द जाल फैलाकर गरीबो को गुमराह करना यही कार्य ये जन बिरोधी, गरीब बिरोधी, देश बिरोधी और मानवता बिरोधी भी है, वास्तव में प्रचंड क़े ऊपर हजारो हत्याओ का आरोप है इस कारन उनके ऊपर एफ.आइ.आर. करके मुकदमा चलाना चाहिए और उन्हें फासी की सजा होनी चाहये.

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6 टिप्पणियाँ

  1. http://bhandafodu.blogspot.com/2010/06/blog-post_27.html

    इस पोस्ट को प्रसारित करनें की आवश्यकता है

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  2. सुबेर जी आपने बात बिल्कुल सही कही है। यही बात मैने अपने पांच पोस्टों मे लगातार उठाई है। समाजवाद बुरा नहीं है। पर समाजवादियों की कथनी और करनी में काफी अंतर है। वैसे भी देश में हमेशा से ही कुछ न कुछ समाजवाद रहा है।

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  3. एक और जबरदस्त लेख....

    कुंवर जी,

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  4. भारत-नेपाल सीमा पर नेपाल के गावं तथा सहरो मे प्रत्येक हफ्ते किसी सशस्त्र मधेसी समुह, माओवादी या अपराधी की गोली से कोई न कोई निर्दोष नागरिक मारा जा रहा है। हिन्दु नेता काशी नाथ तिवारी की हत्या भी इस कडी का हिस्सा है। मधेस की वर्तमान अवस्था एक बारुद के ढेर की तरह है।

    घटना का विश्लेषण करे तो ज्ञात होता है की भाडे के लोगो के बल पर माओवादीयो ने जब देश को ठप्प कर दिया था तो इन्ही हिन्दु नेता काशी तिवारी की अगुवाई मे लोगो ने जबर्जस्त प्रतिकार किया जिसमे माओवादी नेता प्रभु साह, अजंना विशंखे, शिवनाथ कुसवाहा आदी को चोटे आई थी। उसके बाद माओवादीयो द्वारा घोषित बन्द के विरुद्ध देश भर प्रदर्शन होने लगे और अंततः माओवादीयो को अपना कायर्क्रम आनन फानन मे वापस लेना पडा। ऐसा माना जा रहा है कि माओवादीयो ने प्रतिशोध लेने के लिए यह ह्त्या की है।

    लेकिन इस हत्या से हिन्दुओ मे भय व्याप्त है। क्या अब कोई व्यक्ति हिन्दु रक्षा के लिए नेतृत्व लेने के लिए आगे आएगा ? जिस संगठन के लिए काशी तिवारी काम कर रहे थे वह रा.प्र.पा (नेपाल) के राजावादी नेताओ के निकट था - क्या यह संगठन अपने राजनितिक उद्देश्य प्राप्ति के लिए काशी तिवारी तथा हिन्दु कार्यकर्ताओ की भावनाओ का उपयोग भर कर रहा था? नेपाल मे हिन्दुवादी मतलब राजावादी के भ्रम का निवारण कैसे किया ज सकता है? क्या हिन्दु युवा संघको माओवादी आन्दोलन मे वैसी कारवाही करनी चाहिए थी ? काशी तिवारी की पत्नी तथा बच्चो के भरण पोषण के लिए हिन्दु समाज को क्या करना चाहिए?

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  5. काशी नाथ जी राजाबादी पार्टी क़े थे यह तो नहीं मालूम वे इतना बड़ा आन्दोलन नहीं कर सकते थे
    यह तो पूरे देश में मावोबादी क़े खिलाफ जनाक्रोस था बिद्रोह केवल बीरगंज में नहीं,पूरे नेपाल में हुआ.
    पहले भी जब किसी मावोबादी कि सिकायत सेना क़े पास होती थी तब भी उसकी हत्या हो जाती थी
    क्यों कि जैसे ही सेना को सुचना होती तुरंत वे मावोबादियो को बता देते थे वास्तव इसे समझने कि आवस्यकता है
    राजा हिन्दू बिरोधी है यह अधिकांस नेपाली समझता है लेकिन वहा क़े बामपंथी यह प्रचार करते रहते है कि
    हिन्दूबादी यानि राज़ाबदी वे अपने दोनों हाथो में लड्डू चाहते है आज हिंदुत्वा अलग ताकत क़े रूप में खड़ा हो रहा
    है उसे समर्थन कि आवस्यकता है.

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  6. दिर्घतमा जी, आप की शैली अदभुत है। घटना मे से कुछ बातो को लेते है। घटना मे कुछ बातो को गोल कर जाते है । कुछ बातो को जोडते है। फिर आप अपना पुर्वाग्रही निष्कर्ष निकाल लेते है।

    नेपाल मे भारतीय डिप्लोमैसी के फेलियर के कारण राज संस्था समय-समय पर चीन परस्त होती रही है। नेपाल मे भारतीय डिप्लोमैसी दोस्त को दुश्मन बनाने मे ; और दुश्मन को दोस्त मानने मे माहिर है। चीजो को सही एवम तटस्थ दृष्टि से देखना आवश्यक है।

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