संघ की एक और कृति विचारक चिंतक बलराज मधोक

 मधोक जी -----!

गिर गया !
एक और वट वृक्ष !

अस्त हो गया !
राष्ट्रसाधना का एक और सितारा !

और यूँ खो दिया ...
भारत माता ने एक और लाल जिसने आजन्म देशभक्ति की अलख जगाये रखी।

एक एक पल जिंदगी का, शरीर का एक एक कतरा देश के लिए ।
सोना.. जागना और श्वांस लेना हर पल देश, भारत और इसके परम् वैभव की साधना में।

अंग्रेजों के दमन चक्र से लेकर इंदिरा की तानाशाही तक !
पकिस्तान से कश्मीर को बचाने से लेकर भारतीय राजनीति के चीरहरण को रोकने तक.....!

तुम टकराते रहे अत्याचारियों से, सत्ता के सौदागरों से  ..!

और हर बार तुम बचा लाये भारत की लाज... भारतीयों का मान ....और उससे भी बढ़कर वह आदर्श जिसे जान कर हर देशभक्त एक बार यह कहने को मजबूर हो जायेगा की काश !!

मैं भी बलराज मधोक हो पाता !

25 फरवरी 1920 को अखण्ड भारत के गिलगित में तुम्ही तो जन्मे थे बलराज !

जिसने पुस्तैनी वैभव विलास को छोड़कर देश की सेवा में मिट जाने का संकल्प लिया था। ठीक 18 साल की उम्र में जीवन की सुनहरी गलियों को ठुकराकर तुमने त्याग तपस्या की कमर कसी और संघ प्रचारक के रूप में कंटकाकीर्ण मार्ग अपना लिया।

इतिहास पर थोड़ी पकड़ रखने वाले बताएँगे की बलराज मधोक न होते तो हम पूरा कश्मीर पाकिस्तान को गवां बैठे होते ।

यह विधि का विधान ही था की विभाजन के 08 साल पहले ही बलराज मधोक आप संघ प्रचारक रूप में कश्मीर में सक्रीय हो गये थे। यदि आपके नेतृत्व में 200 संघ स्वयंसेवक श्रीनगर नहीं पहुंचते तो कुछ गद्दार कश्मीरियों की पाकिस्तानियों के साथ साजिश सफल हो जाती और हम पूरा कश्मीर गवां बैठते।

विभाजन के बाद पाकिस्तान से पीठ में घोंपा गया खंजर लेकर लौटे लाखों हिन्दुवों के लिए संघ क्या है यह वह और उनकी पुश्तें जानती होंगी।

बलराज केवल यही योगदान इतना बड़ा है जिस पर भारत का जर्रा- जर्रा आपका ऋणी रहेगा।

लेकिन आप तो भारत भक्ति के दुसरे दधीचि थे।

खुद को जलाकर औरों को रौशनी देने वाले मशाल !!
सिधान्तो पर अडिग चट्टान और अन्याय के खिलाफ लड़ने वाली तलवार।

प्रजा परिषद् (कश्मीर), भारतीय जनसंघ, ABVP से लेकर अखिल भारतीय जनसंघ तक आपने जितने भी पौधे लगाए वे सारे वट वृक्ष बनकर भारत की सेवा कर रहे हैं।

धारा 370 पर आपकी मंशा से घबराकर शेख अब्दुल्ला ने आपको J&k से निकाल दिया तो आपने दिल्ली में अपनी देश सेवा की धूनी जलाये रखी।

नई सत्ता को आवारा होने से बचाने के लिए आपने राजनीति में पूरी दखल रखी। 1961 में दिल्ली के सांसद बने तो यह आप ही थे जो मदान्ध नेहरू को "vacate the seat !" कहने की हिम्मत रखते थे।

यह आपका नेतृत्व ही था जिसने जनसंघ को 1967 चुनाओं में 35 सीटें जीता दीं।

वसूलों के लिए किसी से भी टकराये, भले आपको इमरजेंसी में 18 महीने जेल काटनी पड़ी हो।

सिद्धांतों पर आपने अपनी पार्टी को भी नहीं बख्शा और वाजपेयी जी भी का विरोध किया। लाल कृष्ण आडवाणी जिन्होंने आपको पार्टी से निकाला था, आज आपके अंतिम दर्शन के वक्त आपसे उसके लिए क्षमा माँगते रहे होंगे।

बलराज जी आपकी देह हमारे बीच नहीं रहेगी लेकिन आपके आदर्श, आपकी राष्ट्र आराधना और आपका सिद्धान्तमय जीवन सदा सर्वदा भारत और भारतीयों को राह दिखाते रहेंगे।

"कश्मीर, जीत या हार और कश्मीर जीत में हार" जैसी आपकी किताबें भारतीय इतिहास में "केस स्टडी" के रूप में हर काल में प्रासांगिक रहेंगी।

अंत में इतना ही कहूँगा मधोक जी आपने यह शरीर त्यागा है तो दूसरा शरीर भी भारत में ही धरना।
ताकि यह देश पुनः बलराज बन सके, भारत माँ पुनः परम वैभव को प्राप्त हो सके....जो आपका अंतिम सपना था ... और करोड़ों भारत भक्तों का भी।

                              भारत माता की जय !

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