चर्च का विदूषक चेहरा-----!

"न राज्यम न राजाशीत न दंडो न दंडिका"

महाभारत का युद्ध समाप्त हो चूका है भगवान श्री कृष्ण धर्मराज युधिष्ठिर से कहते हैं, हे युधिष्ठिर पितामह मरण सैया पर पड़े हैं--! उनसे आपको राजनैतिक शिक्षा लेनी चाहिए जब भगवान सहित सभी पांडव पितामह के पास पहुचते हैं, उनसे पूछते हैं कि हे पितामह जब राज्य नहीं था और राजा नहीं थे तो सामाजिक व् राज्य ब्यवस्था कैसे चलती थी ? भीष्म पितामह कहते है हे पुत्र 'न राज्यम न राजाशीत न दंडो न दंडिका' उस समय न राज्य था न कोई राजा था न कोई गलत कार्य करता था न कोई दंड देने वाला था सभी धर्मानुसार चलते थे कार्य करते थे। वह वैदिक युग था सभी वेदानुसार जीवन यापन करते थे, ऐसा था हमारा वैदिक काल का युग ---!
हजारों लाखों ही नहीं करोणों वर्ष पहले हमारे ऋषियों ने मानवता की एक उत्कृष्ट जीवन शैली बनाई जिसे हम हिन्दुत्व कहते हैं। लेकिन पश्चिम मे चर्च ने विदूषक का काम किया (हिंसा, हत्या, बलात्कार को ही धर्म माना) जिसमे भी मतभेद है चर्च का एक वर्ग कहता है की इशू ईश्वर का एक मात्र पुत्र था। वही पवित्र आत्मा थी और सभी मनुष्य पाप की संतान है यानी पापी है। यानी इशू मे विस्वास रखना, यहूदियों मे जो परंपरा वादी थे 'ओल्ड टेस्टमेंट' मानते थे उन्होने कील ठोककर मारा। उस समय आंधी पानी आया यहूदी सेना के लोग इससे बचने के लिए कहीं भाग गए- छिप गए मौका पाकर इशू के लोगों ने उसे वहाँ से निकाल कर बचा लिया। दूसरे पक्ष का कहना है की इशू मरने के पश्चात जिंदा हो गए एक दूसरा पक्ष है जो कहता है कि इशू को शूली पर चढ़ाया ही नहीं गया था। एक और पक्ष आज एक सोध के अनुसार इशू नाम का कोई ब्यक्ति पैदा ही नहीं हुआ चर्च ने इशू के जीवन की एक कहानी गढ़ी।

चर्च द्वारा गढ़ा हुआ धर्म--!

ईसा पूर्व यूरोप, अमेरिका, कनाडा इत्यादि देशों मे बहुदेव-वाद था समन्वित सभ्यता परक ब्यवहार, विभिन्न संस्कृति प्रतिरूप की मान्यता थी। मूलतः प्रारम्भिक "चर्च-धर्म" गढ़ने वाले ईसाईयों का एक समूह एकल सर्वसत्ता की सर्वोच्चता मे विस्वास करता था । जो एक देवतावाद मे विस्वास था प्रचलित बहुदेवतावाद से अलग था, ईसाई धर्म गुरुओं ने जनता को ईश्वर से भय-भीत किया। उसकी प्रत्येक आज्ञा का पालन करो, यही मनुष्य का सम्पूर्ण कार्य है ईश्वर से भयभीत रहना आवस्यक है वही मृत्यु के देवता हैं। वही नर्क मे भेजता है इसलिए मै तुमसे कहता हूँ की ईश्वर से भयभीत रहो( तत्कालीन पॉप की मन गढ़ंत )। तीसरी शताब्दी के 'फादर टरतूलियन' ने कहा की यह समझ से परे है कि कैसे ईश्वर भय की मांग कर सकता है, (जो डरवाता है वह कैसा ईश्वर है) लगता है ईश्वर-ईश्वर न होकर कोई राजा अथवा सामंत हो ।

स्त्री बिमर्श-----!

"कोरियनथान" को लिखे अपने पहले पत्र मे 'सेंटपाल' ने पुरुषों की श्रेष्ठता का कारण स्पष्ट करते हुए लिखा है ब्यक्ति मूलतः स्त्री से उत्पन्न नहीं होता लेकिन स्त्री पुरुष से बनती है उसका शृजन महिलाओं के लिए नहीं होता अपितु पुरुष के लिए ही महिलाएं होती हैं। चर्च के अनुसार महिलाओं को पुरुषों की आज्ञाकारी भूमिका मे रहना चाहिए। मै किसी महिला को शिक्षक बनने की आज्ञा नहीं देता और न ही उसे पुरुषो पर अधिकार प्रदान करना चाहता हूँ। चौथी शताब्दी मे ईसाई पुजारियों ने महान विद्वान 'हाइपातिया' को मृत्युदंड दिया तो सेंटश्रीर्ल ने कहा कि वह एक महिला थी और ईश्वर के आज्ञा की अवहेलना करते हुए पुरुषों को शिक्षा दे रही थी। महिलाओं को डायन, चुड़ैल बताकर हत्या करने वालों को पारिश्रमिक तौर पर अलग -अलग नियम थे --!
@ खौलते तेल के कड़ाही मे उबलने के लिए 48 फ्रैंक, @चक्का या पहिया के ऊपर रखकर मारने का दस फ्रैंक,
@ हाथ-पैर मे रस्सी बांधकर घोड़े द्वारा चार टुकड़े करने के लिए 30 फ्रैंक, 
@ जीविता को कब्र मे गाड़ने के 2 फ्रैंक, 
@चुड़ैल स्त्री को जलाने के लिए 28 फ्रैंक, 
@ नाक,कान, जीभ काटने के 10 फ्रैंक, दहकते लोहे से दागकर मारने के 10 फ्रैंक, 
@ जिंदा स्त्री की चमड़ी उतारने के 28 फ्रैंक इस प्रकार बिभिन्न देशों में चर्च के कारनामो की सूची बड़ी लंबी है ।
चर्च के 'फादर टेर्टुलियन' ने कहा " क्या तुम नहीं जानती हो की तुम 'इव' हो ? तुम ईश्वरीय विधान की अवज्ञा करने वाली हो तुमने ईश्वर के प्रतिक और उसके स्वरुप ब्यक्ति को नष्ट किया। ईसाईयों ने सभी दुर्गुण महिलाओं में देखा स्त्री अतिलोलुप प्राणी है। इसमें निरंतर अकुलता बनी रहती है, निरंतर क्षरण के लिए बनी है। वह विद्रोह का घर है, जादू-टोना के अपराध में पकड़ी गयी महिलाओं के साथ कई दिन तक बलात्कार किया जाता था। जब किसी मनुष्य को कामेक्षा होती तो उसे महिलाओं को ही अपराधी माना जाता कि उनके कारन ही पुरुषों को कामेक्षा होती है । इसलिए वे उन महिलाओं के साथ निर्दयता पुर्बक बलात्कार करते थे। महिलाओं के स्तनों और जननांगों में नुकीले काटें, गर्म लोहे की क्षड़ों आदि से प्रहार करते, पादरी कभी -कभी अपनी 'कामेक्षा' हेतु किसी भी स्त्री को जादूगरिनी घोषित करते थे और उसके साथ सम्भोग की तृप्ति हो जाने पर निर्दयता पूर्बक हत्या कर देते। 

हत्यारा होने का गौरव

धर्मोपदेशक पादरियों द्वारा बड़े गर्व के साथ घोषणा की जाती की उन्होंने कितनी स्त्रियों की हत्या की। वर्टाजवर्ग के पादरी द्वारा यह दावा किया गया की उसने पाँच वर्षों में उन्नीस सौ महिलाओं की जादू-टोना के अपराध में हत्या की। दूसरी ओर बेनेडिट- कार्पजो का दावा था कि उसने बीस हज़ार शैतान के पुजारियों की हत्या की. चर्च ने यूरोप से यहूदियों और मूर्तिपूजक प्राचीन ईसाई समूहों को समूल विनष्ट कर दिया। थोड़े से लोगो को धर्मान्तरण करके छोड़ा गया इन हत्यावों के कारन यूरोप में सांस्कृतिक, धार्मिक, चिकित्सकीय, कलात्मक और ज्ञानात्मक क्षमता का इतना विनाश हुआ कि समाज को अपनी दशा सुधारने में शताब्दियों लग गया। 1492 मे कोलंबस अमेरिका की धरती पर उतारा तो वह उसे भारत समझ मूर्ति पूजक भारतियों को अपने पवित्र विस्वास मे धर्मांतरित करना चाहिये। इस उद्देश्य पूर्ति हेतु हजारों अमेरिकन को दास बनाया, धर्मांतरण हेतु बाध्य किया जो मतांतरण नहीं करते उनकी हत्या की जाती। महिलाओं के साथ बलात्कार करना अपना अधिकार समझते। धीरे-धीरे अन्वेषक भारत मे फैल गए सोलहवी- सत्रहवी शताब्दी मे अड़तालीस हज़ार गाओं के लोगों की हत्या की। इस प्रकार हम देखते हैं कि चर्च ने संगठित तरीके से न्याय की मूल प्रवृती की हत्या की और लूट-पाट, हत्या को ही उसने धर्म घोषित किया ।               

 चार कथानक --!

चर्च द्वारा एकरूपता बनाये रखने का प्रयास कभी पूर्ण रूप से सफल नहीं रहा, यहाँ तक की चारो कथानकों में एक दूसरे में भिन्नता पायी जाती है वे एक दूसरे के बिरोधी भी है। मैथ्यू कथानक-- यीशु एक संभ्रांत ब्यक्ति था जो डेविड से सिलोमन में अवतरित हुए थे जबकि ल्यूक कथनक कहता है कि यीशु सामान्य परिवार के सहृदय लोगों में से एक थे। मार्क का कथानक है कि यीशु एक गरीब बढ़ई के रूप में पैदा हुए थे। मैथ्यू के अनुसार यीशु के जन्म के समय राजाओं की भीड़ उन्हें देखने के लिए गयी, जबकि ल्यूक के अनुसार उन्हें गड़ेरिये देखने गए थे, एक कथानक के अनुसार इशू नाम का प्राणी पैदा ही नहीं हुआ था।

रोमन यहूदियों का युद्ध--!

ईसामसीह संभवतः अपने जीवन कालमें राजनैतिक, आध्यात्मिक परिवेश में आवस्यक सुधार चाहते थे और उसका नेतृत्व कर रहे थे इस प्रकार हिब्रू और ग्रीक भाषाओँ मे क्राइस्ट का अर्थ नेता अथवा राजा के प्रकार्यात्मक उपाधि से है। तात्कालिक राजनैतिक परिवेश को दृष्टि में रखते हुए यह कहा जा सकता है कि उनके क्रिया कलाप के कारन उनकी हत्या यहूदियों ने न करके रोमनों ने किया था, "रोमनवासी मृत्यु दंड के रूप में लोगों को क्रास पर लटका देते थे। रोम के अधिपत्य का प्रतिरोधी क्रास यहूदी लोगो का प्रतिक था, ईसाईयों ने अपने धार्मिक विस्वास के रूप में रोम वासियों के परंपरागत विस्वासों के कुछ मूल-भूत तत्वों को सामिल कर लिया था, जैसे रोम वासियों का मानना था कि मिश्र का सम्बन्ध सूर्य देवता हेलियोज और अपोलो से है। मिथ्रका जन्मदिन २५ दिसंबर को मनाया जाता है और उसे यीशु के जन्मदिन के रूप में स्वीकार कर लिया गया, उनका मानना था कि शिशिर ऋतू में सूर्य देवता वापस आते हैं और यही समय है जब ईसाई ईस्टर की छुट्टी मानते हैं। रोम में वेटिकन पहाड़ी पर स्थिति एक गुफा मंदिर को ईसाईयों ने मिथ्र को समर्पित किया और इसे कैथोलिक चर्च का प्रमुख स्थान बना दिया इसके सर्बोच्च पुजारी का नाम पीटर-पैत्राम था जो रोम के विशप का पद नाम पापा -पॉप बन गया था।

चर्च द्वारा विध्वंश का दौर

विद्वानों और कलाकारों ने अपने विचारों को निर्भीकता के साथ जनता के सामने रखना शुरू किया दर्शनशास्त्र और स्थापत्य कला के क्षेत्र में नवीनता का सूत्र पात हुआ चर्च द्वारा फैलाये जाने वाला भ्रम जन सामान्य को भ्रमित नहीं कर पा रहा था, फिर क्या था -? चर्च का भयावह चेहरा सामने आने लगा संगीत, नाट्य, मनोरंजन, काब्य, कला, पेंटिंग आग लगा समाप्त करने का प्रयत्न किया गया, इन सबके कारन समाज में पादरियों के प्रति घृणा का भाव बढ़ रहा था पादरियों को भी जनता से दुरी बनाकर छिपकर रहना पड़ता था। जिस चर्च ने शक्ति पूजा को बिरोधी घोषित किया था वे जनता के सामने घुटने टेकते हुए देवियों के स्थान पर 'मैरी' को रखा ईसामशीह के अतिरिक्त महिला को देवी स्वीकार करना एकेश्वरवाद टूट ही गया। विशेष रूप से लैटिन और इटली के कवियों द्वारा लिखी गयी पुस्तकों का रूपांतरित दस्तावेज महिलओं के गहने संगीत वाद्यों और कलाकृतियों को १४९७ में बड़े पैमाने में जलवा दिया। सन १२०४ में इस के सैनिकों ने 'कांस्टेनटिनोपल' में उत्तेजनात्मक हिंसा फैलाई महिलाओं के साथ बलात्कार किया पुरे शहर को लुटा और जला दिया। कथा लेखक 'ज्योफ्रे क्लिहाईडूइन' के अनुसार इस जगत के निर्माण के बाद किसी नगर से इतनी अधिक मात्रा में लूट नहीं हुई, मानवता के प्रति जो सबसे घृणित कार्य किया जा सकता था वह चर्च के धर्मयोद्धाओं ने इस नगर मे नागरिकों के साथ किया। पॉप की सत्ता को चुनौती देने वाला कोई भी नागरिक सपरिवार समाप्त कर दिया गया। बाइबिल के एक पद को इस घटना के समर्थन में उलेख किया गया- "जो मेरे शत्रु हैं जिनपर मै शासन नहीं कर सकता। उन्हें मेरे समक्ष समाप्त होना होगा ऐसे लोगों को मृत्युदंड दिया जाना चाहिए" इस आक्रमण के बाद एक लैटिन सामंत पॉप के अधीन रहकर १२६१ तक यहाँ शासन करता रहा। 

चर्च व पॉप का सत्ता पर नियंत्रण--!

चर्च ने बड़ी ही योजना पुर्बक रोम के राजा को फंसाया धीरे-धीरे राजा पर चर्च ने सिकंजा कस लिया राजा पॉप का कठपुतली बन गया। पादरियों ने सबसे पहले राजा के पुत्र को अविस्वासी करार देकर उसको मृत्यु दंड दिला दिया, उसके बाद पॉप ने रानी पर निशाना साधा नारी स्वर्ग के रास्ते मे बाधक है नरक का द्वार है धीरे धीरे रानी को चुड़ैल घोषित करा पानी मे उबालकर हत्या करा दी। राजा बूढ़ा हो चुका था बहुत आसानी से राजा के मरने के पश्चात पॉप रॉम साम्राज्य का शासक बन बैठा फिर क्या था ! प्रसिद्ध इतिहासकर फिलिप शाह ने लिखा है "वह पादरी राजाओं को हटाता था, सामान्यजन को विशेषाधिकार देता था, बिद्रोहियों को कुचलता था, भूमि हस्तांतरण करता था, लोगों से दंड वसूलता था अपराधियों को मृत्यु दंड देता था। न्यायालयों के अधिकारों का अतिक्रमण करता था, राष्ट्र के संहिताओं का निर्धारण करता था यानी सर्बोच्च अधिकार प्राप्त चर्च हो गया था पॉप मे अधिकार के प्रति निरंतर बढ़ती जा रही थी। धर्मयुद्ध लड़ने की मानसिकता चर्च ने तैयार की इसलिए उन्होने चर्च के शत्रुओं को निर्दयता पूर्बक कुचल डाला, पूरे यूरोप के सत्ता के सर्बोच्च शिकार पर पॉप मौजूद हो गए। इन परिस्थितियों के नियंत्रण हेतु पॉप ने 1219 मे पुजारियों के लिये रोमन कानूनों के अध्ययन पर प्रतिवन्ध लगा दिया तथा पेरिस विश्वविद्यालय मे अध्यापन पर भी पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया ।

चर्च के कुछ नियम और प्रताड़ना के तरीके             

जिन लोगो ने चर्च को स्वीकार नहीं किया उनके लिये पॉप ने अन्वेषक ब्यवस्था खड़ी की जिसमे जगह -जगह प्रताड़ना कच्छ बनाए 1363 मे अन्वेषकों ने प्रताड़ना के असीमित अधिकार प्राप्त कर लिये कि वे रक्त-पात संबंधी अपराधों से मुक्त रहेगे इस प्रकार पॉप ने लोगो की हत्या का लाइसेन्स स्वयं जारी किया था। क्योकि दुष्टात्मा की प्रताड़ना करना हत्या करना उनके अधिकार मे सामील था, पानी, छड़, बेंत इत्यादि से प्रताड़ित करना सामान्य विधि थी, दोषियों को तेल या चर्बी से मला जाता और उन्हे धीरे -धीरे आग मे जलाकर भुना जाता था, लोगो को मरने के लिये बड़े-बड़े आँवा बनाए गए थे। इन भट्ठियों मे लोगो को जिंदा जलाया जाता था, बस्तुतः नाजी जर्मनी मे बीसवीं शताब्दी मे जो अत्याचार हुए वह प्रयोग चर्च ने पहले ही कर रखा था। एक भयंकर प्रताड़ना का तरीका दोषी के पेट मे उसके मलद्वार द्वारा चूहों को डालना था, दोषी ब्यक्ति को इस प्रकार प्रताड़ना देने के लिये एक बर्तन मे चूहों को आग मे गरम किया जाता। इसके बाद इस बर्तन को अपराधी को नंगाकर उसके नितंभ मे बांध दिया जाता था जिससे चूहे घबड़ाकर अपराधी के मलद्वार से पेट मे चला जाता था, क्या कोई दोषी ब्यक्ति इस प्रकार का कष्ट सहन कर सकता है-? कभी -कभी अपराधियों को सर्ब्जनिक स्थानो पर जिंदा जला दिया जाता था।                 
       "विगत दो हज़ारा वर्षों मे चर्च द्वारा सौ से अधिक संस्कृतियों, सभ्यताओं, पंद्रह सौ से अधिक विशिष्ट जातियों को समाप्त करना तथा एक करोण से अधिक महिलाओं का समूहिक कत्ल किया गया, ईसाई रिलीजन स्थापना हेतु डेढ़ सौ करोण से अधिक लोगो की हत्या की गयी पश्चिम के अंग्रेज़ इतिहासकारों ने बड़ी ही परिश्रम पूर्वक इन हत्याओं का विवरण उपलब्ध कराया है"।  

एक टिप्पणी भेजें

1 टिप्पणियाँ

  1. विश्व मे जहाँ- जहाँ चर्च गया वहाँ की संस्कृति सभ्यता सब-कुछ समाप्त कर दिया चर्च उसी प्रकार है जैसे विष से भरे घड़े मे उपर दूध की थाली लगा दी गयी हो--!

    जवाब देंहटाएं